Shibu Soren : बचपन का संघर्ष, जवानी के आंदोलन - ऐसे दिशोम गुरु बने शिबू सोरेन
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शिबू सोरेन (Shibu Soren) का जाना किसी एक राज्य के लिए नहीं, पूरे देश के लिए क्षति है। वह आदिवासी समाज की सबसे बुलंद आवाज थे। uplive24.com पर जानिए उनके संघर्ष की गाथा।
झारखंड की राजनीति और आदिवासी आंदोलन के सबसे सशक्त स्तंभ, दिशोम गुरु शिबू सोरेन (Shibu Soren) का आज निधन हो गया। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 81 वर्ष के थे और पिछले कुछ महीनों से किडनी संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे। उनके निधन की पुष्टि उनके पुत्र और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने की।
11 जनवरी 1944, हजारीबाग (अब रामगढ़) जिले के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन (Shibu Soren) का बचपन संघर्षों में बीता। जब वह 13-14 साल के थे, तभी महाजनों द्वारा उनके पिता सोबरन मांझी की हत्या कर दी गई। इस दर्दनाक घटना ने शिबू को आदिवासी अधिकारों की लड़ाई के लिए समर्पित कर दिया।
उन्होंने महाजनी शोषण, भूमि हथियाने, और आदिवासी, दलित, पिछड़े वर्गों के हक-हुकूक के लिए आंदोलनों की शुरुआत की। 1970 के दशक में शिबू सोरेन की पहचान एक समाज सुधारक और सशक्त आंदोलनकारी के रूप में स्थापित हो चुकी थी।
झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना और आंदोलन की राजनीति (Jharkhand Mukti Morcha founder)
4 फरवरी 1973 को शिबू सोरेन (Shibu Soren) ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha) की स्थापना की। यह संगठन सिर्फ एक राजनीतिक पार्टी नहीं, बल्कि एक जनांदोलन था। उनका नेतृत्व काल 38 वर्षों तक (1987–2025) चला और इसी वर्ष उन्हें झामुमो का संस्थापक संरक्षक घोषित किया गया।
उन्होंने धान कटनी आंदोलन, जल-जंगल-जमीन आंदोलन, और आर्थिक बहिष्कार आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिससे झारखंड राज्य निर्माण की मांग को राष्ट्रीय पहचान मिली।
जब एक बंद के आह्वान पर झारखंड थम जाता था
शिबू सोरेन (Shibu Soren) की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आंदोलन के दौरान एक आह्वान पर पूरा झारखंड बंद हो जाता था। उनके नेतृत्व में हजारों लोग सड़कों पर उतरते थे। उनके नाम पर गिरफ्तारी वारंट और देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किए गए थे, लेकिन वह कभी झुके नहीं।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने उनके प्रभाव को देखकर उन्हें दिल्ली बुलाया और आदिवासी हित में कार्य करने की सलाह दी।
राजनीति में प्रवेश और चुनावी जीत की लहर (Shibu Soren political career)
1977 में शिबू सोरेन ने टुंडी से अपनी पहली चुनावी पारी खेली, जिसमें वह हार गए। मगर 1980 में दुमका से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उनकी जीत का सिलसिला लंबा है -
- लोकसभा सांसद (दुमका) : 1980, 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009, 2014
- राज्यसभा सदस्य : 1998, 2002, 2020
- झारखंड के मुख्यमंत्री : मार्च 2005 (10 दिन), अगस्त 2008 से जनवरी 2009, दिसंबर 2009 से मई 2010
- केंद्रीय कोयला मंत्री : 2004–2006 (मनमोहन सिंह सरकार)
- झारखंड क्षेत्रीय परिषद (JAC) अध्यक्ष : 1995
जब टुंडी के जंगलों में बनी थी समानांतर सरकार (Dishom Guru social reforms)
शिबू सोरेन (Shibu Soren) सिर्फ राजनीतिक नेता नहीं थे। वह एक विकास पुरुष भी थे। उन्होंने टुंडी के पोखरिया में आश्रम बनाया जहां शिक्षा, शराबबंदी, कृषि, जल संरक्षण, और आत्मनिर्भरता पर काम किया।
उनकी कार्यशैली इतनी प्रभावशाली थी कि देश के कई अर्थशास्त्री और पत्रकार उनके सामाजिक-आर्थिक मॉडल का अध्ययन करने पहुंचे थे।
उनकी आंदोलनकारी छवि के कारण कई बार उन्हें कानूनी मुकदमों का सामना करना पड़ा। उनका नाम चिरुडीह हत्याकांड, शशिनाथ झा हत्याकांड में आया। लेकिन उन्होंने हर मामले में न्यायपालिका में भरोसा बनाए रखा और हर बार उन्हें न्याय मिला।
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